Monday, March 22, 2010

उसका प्रेम उसकी महक

दोपहर
खामोश पग्दंदियाँ
धुप और छाँव
अपनी बातों में गुमसुम
चुप चुप कदम
कुछ धरा से
कुछ धुल कणों
को सुनते हुए
लम्बे दरख़्त
झुरमुटों से उतरती किरणें
वो कचनार की सुन्दर कलियाँ
मेरे गालों से लिपट सी गयी
दो कलियाँ
दो होठों पर आकर
नृत्य करते हुए
आँखों में झाँक कर बोली
और फिर क्या था
ह्रदय ने
आत्मा ने
पूर्ण प्रेम में नहाकर
अपना प्रेम
उन पर उंढेल कर
अनंत मुस्कान
अनंत स्नेह
और फिर अचानक
आँखों ने बंद होकर
उन कलियों को गले से लगा लिया
और फिर हवाओं ने आकर
होठों से कहा
और फिर पूरा माहोल
प्रेम मय होकर
प्रेम में डूब गया।

डॉ। बी ऍम शर्मा।

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