सुन्दरमय
धन्यवाद भरा
फिर भी
मै फिसला
कुछ अनचाहे शब्द
हे प्रभु
तुरंत आपने संभाला
फिर भरवाई उड़ान
फिर कुछ आसक्ति की बूंदे
फिर एक नयी नदी की धार
जीवन में जुडी
हुआ संग सत्य का
कुछ प्रेम अंकुरों का
आयी सुहानी शाम
घेर लिया जेहन को चारो और से
अनंत प्रणाम
आपकी बिभुतियों को
आन्तरिकता से
आपको हज़ारों नमन।
डॉ। बी ऍम शर्मा
Monday, March 22, 2010
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