Monday, March 22, 2010

२३०३२०१० आज का दिन

सुन्दरमय
धन्यवाद भरा
फिर भी
मै फिसला
कुछ अनचाहे शब्द
हे प्रभु
तुरंत आपने संभाला
फिर भरवाई उड़ान
फिर कुछ आसक्ति की बूंदे
फिर एक नयी नदी की धार
जीवन में जुडी
हुआ संग सत्य का
कुछ प्रेम अंकुरों का
आयी सुहानी शाम
घेर लिया जेहन को चारो और से
अनंत प्रणाम
आपकी बिभुतियों को
आन्तरिकता से
आपको हज़ारों नमन।

डॉ। बी ऍम शर्मा

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